रिश्तों की टूटती डोरः संस्कार और संस्कृति की ओर लौटने का समय

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रिश्तों की टूटती डोरः संस्कार और संस्कृति की ओर लौटने का समय

@LeaderPost। देश में दो दिनों के भीतर हुई घटनाओं ने पूरे समाज को झकझोर दिया है।

लखनऊ में एक युवक ने अपने पिता के साथ मिलकर अपनी मां और चार बहनों की हत्या कर दी है। दूसरी घटना नागपुर की है। यहां एक बेटे ने अपने माता-पिता का खून कर दिया। इन दोनों घटनाओं ने अपने पीछे कई सवालों को छोड़ दिया है। साथ ही यह बहस भी तेज हो गई है कि समाज में रिश्तों का बंधन पहले से ज्यादा कमजोर हुआ है। एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या आज के युवाओं में संस्कार की कमी होती जा रही है? या फिर युवाओं के मन में अपने माता-पिता के प्रति सम्मान भाव का ह्रस हुआ है। अगर आज के युवा अपने माता-पिता और परिजनों का खून बहाने में कोई परहेज नहीं कर रहे हैं, तो यह बात आज के समाज के लिए गंभीर है।

युवाओं में बढ़ती हिंसा के सवाल पर समाजशास्त्री डॉ. वीके सिंह का कहना है कि इसके लिए परिवारिक, सामाजिक, आर्थिक और मानसिक कारण हैं। पहले संयुक्त परिवार व्यवस्था थी। बच्चों का अपने माता-पिता के अलावा दादा-दादी, चाचा, ताऊ, बुआ की देखरेख में लालन-पालन होता था। इससे परिवार से संस्कार प्राप्त होते थे।

आज एकल परिवार के कारण युवाओं को उचित मार्गदर्शन नहीं मिल रहा है। इसके अलावा आज का युवा स्वतंत्र रहना चाहता है। वो अपनी शर्तों पर जीना चाहता है। वह जरा भी दवाब बर्दाश्त नहीं करना चाहता है। जब भी उसके विपरीत परिस्थिति उत्पन्न होती है, वह सहन नहीं कर पाता है। वह हिंसा पर उतारू हो जाता है।

मनोवैज्ञानिक डॉ. हेमा खन्ना का कहना है कि हिंसा एक प्रकार की मनोविकृति है। इसके व्यक्तित्व, मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक वातावरण और आपसी संबंध मुख्य कारण है। इसके लिए युवाओं को बचपन से ही शिक्षा और संस्कार देने की आवश्यकता है। साथ ही सकारात्मक और रचनात्मक सोच बनाने पर बल देना चाहिए। उन्होंने कहा कि युवा को अपने सपने पूरे करने के लिए सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। कोई समस्या हो तो उसका उचित समाधान ढूंढना चाहिए। आज का युवा जरा सी असफलता पर जल्द टूट जाता है। इसकी वजह से या तो वो हिंसक हो जाता है या फिर अवसादग्रस्त। इस वजह से कई बार वो आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। युवाओं को उचित परामर्श और मार्गदर्शन की आवश्यकता है।

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प्रो. एसी त्रिपाठी का कहना है कि आज का युवा अति महत्वाकांक्षी है। अपनी सफलता के लिए परिश्रम नहीं करना चाहता। बिना परिश्रम के ही सफलता चाहता है। अगर उसे सफलता नहीं मिलती है तो वह नकरात्मक हो जाता है। उसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता है। उनका मानना है कि इसके लिए परिवार और समाज भी दोषी है। लोग बच्चों को संस्कार और संस्कृति देने से परहेज कर रहे हैं। हमारी संस्कृति धैर्य, त्याग और संयम सिखाती है।

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