लखनऊ। सौरभ हत्याकांड ने जहां एक ओर मेरठ को झकझोर कर रख दिया तो वहीं अब इस केस की परछाई मासूम पीहू पर भी पड़ रही है। छह साल की इस बच्ची की कस्टडी को लेकर मृतक सौरभ के परिजन और आरोपी मुस्कान के माता-पिता के बीच जंग छिड़ गई है। दोनों पक्ष बच्ची के भविष्य को लेकर अपनी-अपनी भावनात्मक और वैधानिक दावेदारी पेश कर रहे हैं।
मुस्कान के परिजन बोले – “बेटी को तो हमने पाला है”
मुस्कान के माता-पिता का दावा है कि पीहू उनके साथ पैदा होने के बाद से ही रह रही है और उनके बिना उसका जीवन अधूरा होगा। वहीं सौरभ के परिजन इसे खून के रिश्ते का मामला बताते हुए बच्ची को अपनी जिम्मेदारी बताकर उसकी कस्टडी की मांग कर रहे हैं। तो वहा दूसरी ओर आरोपी मुस्कान की मां कविता रस्तोगी और पिता प्रमोद रस्तोगी भावनात्मक अपील कर रहे हैं कि पीहू का पूरा बचपन उन्हीं के आंचल में बीता है। उनका कहना है कि बच्ची से भावात्मक रुप से जुड़े हुए है इसनिए बच्ची को उनसे अलग करना उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए घातक होगा। कविता बताती हैं कि हर त्योहार, हर जन्मदिन उन्होंने पीहू के साथ मनाया है और वह उनके बिना एक दिन भी नहीं रह सकती। प्रमोद रस्तोगी ने यहां तक कहा कि वे लिखित में देने को तैयार हैं कि पीहू का सौरभ की संपत्ति से कोई लेना-देना नहीं होगा। उनका कहना है, “हम केवल उसकी परवरिश चाहते हैं कोई संपत्ति नहीं।”
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सौरभ के परिवार का पलटवार – “हमारा खून है, हम जिम्मेदार हैं”— सौरभ के भाई बबलू ने साफ कहा कि पीहू उनके भाई की बेटी है और उसकी परवरिश का हक सिर्फ उनके परिवार को है। उन्होंने सवाल उठाया कि जिन लोगों ने मुस्कान को इस कदर पाला कि वह अपने ही पति की हत्या में शामिल हो गई वे पीहू को क्या संस्कार देंगे? बबलू का आरोप है कि जब तक सौरभ जिंदा था। मुस्कान का परिवार बच्ची के नाम पर चुप रहा लेकिन अब जब कानूनी जिम्मेदारी की बात आई है वे भावनात्मक अपीलें कर रहे हैं।
कानूनी पचड़े के बीच गुम होती बच्ची की मासूमियत-
छह साल की मासूम पीहू को शायद यह नहीं पता कि उसके जीवन में क्या उथल-पुथल मंच रखी है। कैसे उस मासूम की जिंदगी की दिशा तय करने के लिए कोर्ट में एक नई लड़ाई छिड़ गई है। जहाँ एक ओर उसकी नानी उसे अब भी यही कहती हैं कि उसकी मां लंदन गई है और जल्द लौटेगी। लेकिन सच्चाई से अनभिज्ञ बच्ची यह तक नही जानती की उसके पिता अब नही रहे और उसकी मुस्कान अपने प्रेमी साहिल के इस वक्त मेरठ जेल में बंद हैं और पुलिस जल्दी ही चार्जशीट दाखिल करने जा रही है।
न्याय की डगर पर झूलता मासूम का भविष्य– अब यह देखना अहम होगा कि अदालत किस आधार पर फैसला करती है – खून के रिश्ते को प्राथमिकता देती है या भावनात्मक परवरिश को। सौरभ को न्याय दिलाने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है लेकिन पीहू के लिए सही माहौल और भविष्य तय करना अब एक नई जिम्मेदारी बन चुकी है।