धनखड़ की तल्ख़ टिप्पणी से उठे सवाल: क्या सुप्रीम कोर्ट संविधान की मर्यादा लांघ रहा है?

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जगदीप धनखड़
धनखड़ की तल्ख़ टिप्पणी से उठे सवाल: क्या सुप्रीम कोर्ट संविधान की मर्यादा लांघ रहा है?

नई दिल्ली । उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के हालिया बयान से देश में एक नई बहस शुरू हो गई है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर ‘सुपर पार्लियामेंट’ जैसा बर्ताव करने का आरोप लगाते हुए कहा कि कुछ न्यायाधीश न केवल कानून की व्याख्या करते हैं बल्कि खुद कानून बनाने और कार्यपालिका के कामों में दखल देने लगे हैं। उन्होंने राज्यसभा इंटर्नशिप कार्यक्रम के समापन पर कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 अब अदालत के लिए ‘हमेशा तैयार परमाणु बटन’ जैसा बन गया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर भी सवाल उठाए जिसमें राष्ट्रपति को एक तय समय में फैसला लेने का निर्देश दिया गया था।

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धनखड़ ने यह भी पूछा कि क्या न्यायपालिका अब खुद को बाकी संस्थाओं से ऊपर मानने लगी है? उन्होंने कहा कि अगर आम नागरिक के घर से नकदी मिलती तो रातों-रात एफआईआर होती लेकिन जब एक जज के घर ऐसा मामला सामने आया तो कोई कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने न्यायपालिका की जवाबदेही और पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े किए खासकर जजों की नियुक्ति में कॉलेजियम सिस्टम को लेकर।

उपराष्ट्रपति की यह बातें केवल व्यक्तिगत राय नहीं मानी जा सकतीं बल्कि यह एक संवैधानिक चेतावनी के रूप में देखी जा रही हैं। उन्होंने इशारा किया कि सभी संवैधानिक संस्थाओं को अपनी सीमाओं में रहकर काम करना चाहिए वरना लोकतंत्र की जड़ें कमजोर हो सकती हैं। इस पूरे मुद्दे ने देश में न्यायपालिका की भूमिका उसकी सीमाएं और उसकी जवाबदेही पर गंभीर चर्चा छेड़ दी है।

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