दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने 2002 गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों से जुड़े एक मामले में छह आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की सिर्फ घटनास्थल पर उपस्थिति यह साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि वह गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा था। जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने गुजरात हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया जिसमें इन छह लोगों को दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने कहा कि सामूहिक हिंसा के मामलों में निर्दोष लोगों को दोषी ठहराने से बचना चाहिए और केवल उन्हीं पर कार्रवाई होनी चाहिए जिनके खिलाफ स्पष्ट सबूत हों।
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2002 में वडोद गांव में हुए दंगों में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और हिंसा भड़काने के आरोप लगे थे। आरोपियों को मौके से गिरफ्तार किया गया था लेकिन उनके पास से कोई हथियार या आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिली थी। ट्रायल कोर्ट ने 2003 में सभी आरोपियों को बरी कर दिया था लेकिन हाईकोर्ट ने 2016 में छह को दोषी ठहराया।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घटनास्थल पर महज उपस्थिति को दोष सिद्धि का आधार नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि अक्सर लोग जिज्ञासावश भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं। बिना ठोस सबूतों के किसी को सजा देना न्यायसंगत नहीं होगा। कोर्ट ने साफ किया कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असफल रहा कि आरोपी भीड़ का सक्रिय हिस्सा थे। इस फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के पहले के निर्णय को बहाल कर दिया और सभी छह आरोपियों को बरी कर दिया।